चाणक्य नीति हिन्दी में :- अध्याय पन्द्रहवां
1. जिसका हृदय सभी प्राणियों पर दया करने हेतु द्रवित हो उठता है, उसे ज्ञान, मोक्ष, जटा और भस्म लगाने की क्या जरूरत है।
2. जो गुरु एक ही अक्षर अपने शिष्य को बढ़ा देता है, उसके लिए इस पृथ्वी पर कोई अन्य चीज ऐसी महत्वपूर्ण नहीं है, जिसे वह गुरु को देकर उऋण हो सके।
3. दुष्टों और कांटों से बचने के दो उपाय हैं, जूतों से उन्हें कुचल डालना अथवा उनसे दूर रहना।
4. गंदे वस्त्र धारण करने वाले, दांतो का पर मैल जमाए रखने वाले, अत्यधिक भोजन करने वाले, कठोर वचन बोलने वाले, सूर्योदय से सूर्यास्त तक सोने वाले को, चाहे वह साक्षात विष्णु ही क्यों न हो, लक्ष्मी उसे त्याग देती है।
5. निर्धन होने पर मनुष्य को उसके मित्र, स्त्री, नौकर और हितैषी जन छोड़ कर चले जाते हैं, परंतु पुनः धन आने पर फिर से उसी का आश्रय लेते हैं।
6. अन्याय से उपार्जित किया गया धन 10 वर्ष तक रहता है। 11 वर्ष के आते ही जड़ सहित नष्ट हो जाता है।
7.समर्थ व्यक्ति द्वारा किया गया गलत कार्य भी अच्छा कहलाता है और नीच व्यक्ति के द्वारा किया गया अच्छा कार्य भी गलत कहलाता है। जैसे अमरता प्रदान करने वाला अमृत राहु के लिए मृत्यु का कारण बना और प्राणघातक विष शंकर के लिए भूषण हो गया।
8. मणि पैरों में पड़ी हो और काँच सिर पर धारण किए गए हो, परन्तु क्रय विक्रय करते समय अर्थात मोल भाव करते समय मणि, मणि ही रहती है और कांच, कांच ही रहता है। भाव यह है कि सही वक्त आने पर अंतिम जीत सत्य की ही होती है।
9. शास्त्रों का अंत नहीं है, विद्याएँँ बहुत है, जीवन छोटा है, विघ्न बाधाएं अनेक है। अतः जो सार तत्व है, उसे ही ग्रहण करना चाहिए। जैसे हंस जल के बीच से दूध को पी लेता है।
10. अचानक दूर से आए थके हारे पथिक से बिना पूछे ही जो स्वयं भोजन कर लेता है, वह चांडाल होता है।
11. पराए घर में रहने से कोई छोटा नहीं हो जाता ? यह देखो अमृत का खजाना, औषधियों का स्वामी, शरीर और शोभा से युक्त यहां चंद्रमा, जब सूर्य के प्रभा मंडल में आता है, तो प्रकाश हीन हो जाता है।
12. कुमुदिनी के पत्तों के मध्य विकसित उसके पराग कणों से मस्त हुआ भौंरा, जब भाग्य वश किसी दूसरी जगह पर जाता है, तो वहां मिलने वाले कट सरैया के फूलों के रस को भी अधिक महत्व देने लगता है।
13. यह निश्चय है कि बंधन अनेक है, परंतु प्रेम का बंधन निराला है। देखो, लड़की को छेदने में समर्थ भौंरा, कमल की पंखुड़ियों में उलझकर क्रियाहीन हो जाता है अर्थात प्रेम रस से मस्त हुआ भौंरा कमल की पंखुड़ियों को नष्ट करने में समर्थ होते हुए भी उसमें छेद नहीं कर पाता।
14. कटा हुआ चंदन का वृक्ष भी सुगंध नहीं छोड़ता, बूढ़े होने पर भी गजराज क्रीड़ा नहीं छोड़ता, ईख कोल्हू में पीसने के बाद भी अपनी मिठास नहीं छोड़ती और कुलीन व्यक्ति दरिद्र होने पर भी सुशीलता आदि गुणों को नहीं छोड़ता।